कैसे होता है थनैला रोग? बचने के उपाय और रोकथाम कैसे करें? कैसे होता है थनैला रोग? बचने के उपाय और रोकथाम कैसे करें?

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कैसे होता है थनैला रोग? बचने के उपाय और रोकथाम कैसे करें?

जो किसान पशुपालन करते हैं, वे अक्सर किसी न किसी पशु रोग से परेशान रहते हैं। गाय-भैंस हो या बकरियां इनमें होने वाले रोगों में एक रोग ऐसा है, जो सीधे दूध उत्पादन को प्रभावित करता है। यानि पशुओं से दूध मिलना मुश्किल हो जाता है। साथ ही दूध की क्वालिटी भी खराब हो जाती है। यह पशुओं के थन को प्रभावित करने वाला मेस्टाइटिस यानि थनैला रोग है। थनैला रोग अक्सर साफ-सफाई के अभाव में होता है। आप इस बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि देश में लगभग 60 फीसदी गाय, भैंसें इस रोग से पीड़ित हो जाती हैं। इसके कारण दूध उत्पादकों को कई हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है। थनैला रोग कई तरह के बैक्टीरियल इंफेक्शन से फैलता है।

जीवाणुओं से फैलता है थनैला

थनैला रोग का प्रमुख कारण बैक्टीरिया है। इन जीवाणुओं को कई समूहों में विभाजित किया जा सकता है। जिसमें स्ट्रेप्टोकोकस और माइकोप्लाजमा बैक्टीरिया थनैला रोग फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। ये रोग वायरल या फंगल इंफेक्शन के कारण भी हो सकता है। साथ ही थन में चोट लगना या मौसमी बदलावों के कारण भी थनैला रोग होता है।

थनैला रोग के लक्षण

थनैला रोग फैलने की मुख्य रुप से तीन अवस्थाएं होती हैं। सबसे पहले बैक्टीरिया थन में प्रवेश करता है। इसके बाद संक्रमण पैदा करता है, जिससे थनों में सूजन हो जाती है। सबसे पहले बैक्टीरिया बाहरी थन नलिका से अन्दर वाली थन नलिकाओं में घुसते हैं, वहां अपनी संख्या बढ़ाते हैं, फिर थन के टिश्यूज यानि स्तन ऊतक कोशिकाओं को क्षति पहुंचाते हैं। इससे थन ग्रंथियों में भी सूजन आ जाती है।

रोग फैलने के कारण

रोग फैलने के प्रमुख कारणों में साफ-सफाई की अच्छी व्यवस्था ना होना है। थनैला का बैक्टीरिया पशुओं की थन नलिका से अंदर प्रवेश कर रोग उत्पन्न करता है। फिर ये रोग एक पशु से दूसरे पशु में ग्वाले के संक्रमित हाथों से फैलता है। इसलिये सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एक पशु का दूध निकालने के बाद, हाथों को अच्छी तरह साफ करके ही, दूसरे पशु का दूध निकालना चाहिए। इससे रोग फैलने की आशंका काफी हद तक कम हो जाती है।

कई कारणों से फैलता है थनैला रोग

  1. थन पर चोट या किसी कारण से जख़्म होने पर
  2. थन पर गोबर, यूरिन या कीचड़ से इंफेक्शन
  3. दूध दुहने के समय अच्छी तरह सफाई न होने पर
  4. फर्श की अच्छी तरह साफ-सफाई का न होना
  5. थन ग्रंथियों से पूरी तरह दूध का न निकलना
  6. गाय की उम्र या अनुवांशिक कारणों से
  7. थन नलिकाओं की साइज में अंतर होने से

थनैला रोग से आर्थिक हानि

थनैला से ग्रसित पशु के दूध में बॉडी सेल की संख्या बढ़ जाती है, नमक बढ़ जाता है। ऐसे दूध की क्वालिटी बेहद खराब और दूषित हो जाती है। इस रोग के कारण ऐसा देखा गया है कि पशु का दूध उत्पादन 5 से 25 प्रतिशत तक कम हो जाता है।

थनैला रोग की रोकथाम

थनैला रोग की रोकथाम जरूरी है, क्योंकि यह एक संक्रमक रोग है और एक पशु से दूसरे पशु में फैलता है। इसके लिए पशुओं के आसपास का वातावरण साफ सुथरा होना चाहिए, साथ ही जानवरों के आवास हवादार होने चाहिए। फर्श सूखा और साफ रखना चाहिए। थनों की सफाई नियमित रूप से करें। एक पशु का दूध निकालने के बाद ग्वाले को अपने हाथ अच्छी तरह से धोने चाहिए। थनों का समय-समय पर परीक्षण करते रहना चाहिए।